डेढ़ दशक पहले निम्न तरह की शंकायें पोल्ट्री व्यवसाय में पैदा हुई थीं
भारत सरकार ने किसान हित एवं देशहित में तीन नये कृषि कानून लागू किये हैं। कानून संख्या 2 (Farmer Empowerment and Protection) के अंतर्गत पोल्ट्री फेडरेशन इसके संदर्भ में अपनी बात कहना चाहती है।
पोल्ट्री उद्योग कृषि संबंध एवं राज्य सरकारों में कृषि अंतर्गत है। कृषि कानून के लिए पोल्ट्री उद्योग एक जीवन्त उदाहरण (Live Example) है। पोल्ट्री सेक्टर के कॉमर्शियल ब्रायलर उत्पादन में 15 वर्ष पहले कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत उत्पादन शुरू हुआ। वर्तमान समय में 21 से अधिक राज्यों में एवं कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत उत्पादन कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग मॉड्यूल द्वारा किया जा रहा है।
डेढ़ दशक पहले शुरूआत में निम्न तरह की शंकायें पोल्ट्री व्यवसाय में पैदा हुई थीं....
1. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां उत्पादन सही नहीं मिलने पर, गुणवत्ता उचित नहीं होने पर किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेंगी।
2. बाजार के भाव गिरने पर कान्ट्रैक्ट कंपनियां अगर माल नहीं उठाएंगी तो किसान अपना माल कहां लेकर जाएगा।
3. यह कान्ट्रैक्ट कंपनियां बाजार पर कब्जा करके किसानों को खत्म कर देंगी।
4. कंपनियां कभी भी किसानों की मेहनत हड़पकर कभी भी भाग सकती हैं।
शंकाओं के बाद जानिए हुआ क्या...
1. किसी भी किसान की जमीन पर किसी कंपनी ने कोई भी कब्जा नहीं किया।
2. कान्ट्रैक्ट कंपनियों ने किसानों से पूरा माल उठाया और कुछ अपवाद को छोड़ दें तो नियमानुसार अनुबंध राशि दी गई।
3. यह शंका सही साबित हुई कान्ट्रैक्ट कंपनियों ने उत्पादन पर 70 प्रतिशत से अधिक और बाजार पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया।
4. कान्ट्रैक्ट कंपनियों ने सिर्फ कोरोना काल खंड में बाजार की मांग नहीं रहने पर किसानों के हाथ फसल छोड़ दी और ग्रोइंड चार्ज भी नहीं लिया।
तकलीफ
1. कान्ट्रैक्ट फार्मिंग से पोल्ट्री किसान दो हिस्सों में विभाजित हो गए। एक अनुबंधित किसान, दूसरा स्वतंत्र किसान।
2. बीज मुखियायों द्वारा कान्ट्रैक्ट फार्मिंग की जाने लगी जिससे स्वतंत्र किसानों को बीज (चूजा) महंगे दाम में मिलने लगा और उसकी उत्पादन लागत अत्यधिक बढ़ गई।
3. कान्ट्रैक्ट कंपनियों का उत्पादन कच्ची अवस्था में ही खुले बाजार में किसानों से प्रतिस्पर्धा करके बिक रहा है।
4. कान्ट्रैक्ट कंपनियों ने उपज वैल्यु एडिशन पर कोई ध्यान नहीं दिया और न ही खपत बढ़ाने के लिए के लिए कोई कार्य किया।
5. तीन बड़े कारपोरेट ने 35 प्रतिशत से अधिक उत्पादन पर एवं मध्यमवर्गीय कंपनियों ने 30-35 प्रतिशत उत्पादन पर कब्जा स्थापित कर लिया।
6. स्वतंत्र किसानों को वर्ष में ली जाने वाली छह फसल में से चार फसल में लागत के दाम भी नहीं मिलते हैं।
7. अनुबंधित किसानों को उनके द्वारा लगाई जा रही लागत या दी जा रही सुविधा का मूल्य नहीं मिलता है।
सुझाव
1. उत्पाद प्रकृति के अनुसार ग्रोइंड चार्ज आंकलन नियमावली को कानून के अंतर्गत शामिल किया जाये।
2. वस्तु वैज्ञानिकों, एक्सपर्ट्स, कान्ट्रैक्ट कंपनी एवं किसान प्रतिनिधियों की कमेटी मिलकर ग्रोइंग चार्ज आंकलन करे।
(उदाहरण- पोल्ट्री उद्योग जैसे पैरिशेबल उत्पादों के लिए हर माह ग्रोइंड चार्ज निर्धारित करना आवश्यक है।)
3. बीज मुखियाओं/इनपुट निर्माताओं द्वारा निर्धारित किये जा रहे उच्च इनपुट मूल्यों हेतु नियमावली निर्धारित हो जिससे कि स्वतंत्र किसानों की लागत प्रतिस्पर्धात्मक हो सके।
4. खुले बाजार में बड़े कारपोरेट द्वारा की जा रही कच्ची उपज विक्रय पर लगाम लगना आवश्यक है। उन्हें अपनी उपज वैल्यु एडेड के लिए प्रोत्साहित किया जाये। इससे स्वतंत्र किसानों एवं कान्ट्रैक्ट कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा घटेगी और सहयोगी उद्योग विकास, निर्यात एवं खपत को बढ़ावा मिलेगा।
5. अनुबंधित किसान को कान्ट्रैक्ट कंपनियों द्वारा दिये जाने वाले इनपुट (बीज, खाद, दवाई, वैक्सीन, दाना आदि) के क्वालिटी पैरामीटर मात्रा एवं सुझाव पैकेजिंग पर अंकित होना सुनिश्चित किया जाये। क्वालिटी पैरामीटर बोर्ड चेयरपर्सन द्वारा प्रमाणित होना अनिवार्य हो।
6. इनपुट निम्न गुणवत्ता एवं दैवीय आपदा से हुए नुकसान की भरपाई अनुबंधित किसान से करना प्रतिबंधित हो। तथा किसी कारणवश फसल या उत्पादन खराब या कमजोर होने पर अनुबंधित किसान को न्यूनतम राशि मिलना अनिवार्य हो।
7. कान्ट्रैक्ट एग्रीमेन्ट दोनों पक्षों के अधिकार/जिम्मेदारी लोकल भाषा में लिखित हो, तथा सत्यापित कॉपी अनुबंधित किसान को भी देना अनिवार्य हो।
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