कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का जीवित दर्शन (Live View) - पोल्ट्री उद्योग
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का जीवित दर्शन (Live View) - पोल्ट्री उद्योग
माननीय भारत सरकार, समस्त माननीय राज्य सरकार, संबंधित माननीय मंत्री / मंत्रालय / अधिकारी महोदय, प्रिय किसान भाईयों एवं प्यारे देशवासियों ...
सप्रेम नमस्कार !
कृषि व कृषि सहयोगी व्यवसायों में किसानों को विगत कई वर्षों से 1. उत्पादन लागत, 2. ऊपज विक्रय, 3. विक्रय मूल्य, 4. घाटा / मुनाफा आदि प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यह अलग अलग समस्याएं है और इनका निराकरण अतिआवश्यक है। व्याप्त समस्याओं के समाधान हेतु माननीय भारत सरकार ने किसान, उद्योग एवं देशहित में तीन नये कृषि कानून लागू किये हैं। समस्याओं के निराकरण हेतु लागू नए कृषि कानून के प्रावधान :-
1. क्रेता व विक्रेता कहीं भी खरीद व बिक्री कर सकते है।
2. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग।
3. भंडारण छूट।
लागू नए कृषि कानून प्रावधानों में "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग" निराकरण पावर सेंटर है, क्योंकि इसका संबंध उत्पादन से है। देश के कुछ कृषि क्षेत्रों में सुझावित व्यवस्था स्वरूप में पहले से ही व्यवसाय हो रहा है, जिसका जीवित दर्शन (Live View) पोल्ट्री उद्योग (ब्रॉयलर फार्मिंग) है। कृषि कानून (2) "कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020" तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर ऊपज रहे तर्कों, आ रही/आने वाली परेशानियों एवं सुधारात्मक बिंदुओं से पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर्स वेलफेयर फेडरेशन (राष्ट्रीय पंजीकृत संस्था) आपको अवगत करवाना आवश्यक एवं नैतिक जिम्मेदारी समझती है जो की निम्नवत है :-
अ. पोल्ट्री उद्योग / ब्रॉयलर फार्मिंग के बारे में जानकारी ।
आ. पोल्ट्री उद्योग में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की शुरूआत में प्रचलित हुई आशंकाएं एवं तर्क ।
इ. पोल्ट्री उद्योग में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आने के बाद हुआ क्या ...?
ई. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के साइड इफ़ेक्ट ।
उ. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे ।
ऊ. कृषि कानून "कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020" संशोधन सुझाव ।
ए. विनम्र निवेदन ।
अ. पोल्ट्री उद्योग / ब्रॉयलर फार्मिंग के बारे में जानकारी :- हमारे देश में कॉमर्शियल पोल्ट्री फार्मिंग एक असंगठित कृषि उद्योग है और इससे सीमांत, छोटे व मध्यमवर्गीय किसान जुड़े हुए है। पोल्ट्री उद्योग ग्रामीण, अर्धनगरीय व नगरीय क्षेत्रों में 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार, कृषि उत्पादों (मक्का, बाजरा) एवं उप-उत्पादों (खली / एक्सट्रैक्शन - सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी, चावल आदि) की खपत कर कृषि किसानों को सहयोग, देश के नागरिकों को सबसे सस्ता प्रोटीन पोषण और कृषि जी.डी.पी. में सालाना 1.5 लाख करोड़ रूपये से अधिक टर्नओवर सहयोग प्रदान करता है। पोल्ट्री फार्म दो तरह के होते है 1. अंडे वाले / लेयर फार्म, 2. चिकन वाले / ब्रॉयलर फार्म। एक वर्ष में ब्रॉयलर पोल्ट्री फार्म से 6 फसल ली जा सकती है। ब्रॉयलर कच्चा उत्पाद होने और धार्मिक दिवसों में मांग एवं आपूर्ति में गैप आ जाने से 2 फसल में नुकसान, 4 फसल में मुनाफा हो जाता है, जो किसान को सालाना टर्नओवर अंतर्गत लाभांश स्थिति में रखता है।
वर्ष 2004, 2006 में बर्ड फ्लू अफवाह ने पोल्ट्री उद्योग को तबाह कर दिया था और उस समय में भी सरकार ने पोल्ट्री किसानों को कोई सहायता प्रदान नहीं की थीं। उद्योग के साथ यही बर्ताव कोरोना वर्ष 2020 में हो रहा है। पोल्ट्री उद्योग अपने बलबूते पर खड़ा हुआ, लेकिन अब इसका आकर इतना बड़ा हो चूका है की इसमें सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता है। विगत 10-12 वर्ष से ब्रॉयलर उत्पादन के अंतर्गत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग बिजनेस मॉडल का आगमन हुआ। विगत 4-5 वर्ष से देश के 21 से अधिक राज्यों में ब्रॉयलर का 70 % से अधिक उत्पादन कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत हो रहा है। कृषि क्षेत्र में पोल्ट्री उद्योग (ब्रॉयलर) कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का एक जीवित उदाहरण (Live Example) है।
आ. पोल्ट्री उद्योग में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की शुरूआत में प्रचलित हुई आशंकाएं / तर्क :-
1. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां किसानों की जमीन / पोल्ट्री फार्म पर कब्जा कर लेंगी।
2. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां / किसान बैंकों से ऋण लेंगे और ऋण चुकता नहीं होने पर बैंक किसानों की जमीन / पोल्ट्री फार्म कुर्क कर देंगे।
3. बाजार भाव / मांग गिरने पर क़्वालिटी नियम आदि थोपकर कॉन्ट्रैक्ट कम्पनी माल नहीं उठाएंगी ।
4. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां कभी भी किसानों की मेहनत हड़पकर रातों-रात भाग सकती है।
5. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से बिचौलिये खत्म हो जायेंगे।
6. कान्ट्रैक्ट कंपनियां फार्मिंग एवं बाजार पर कब्जा कर लेंगी और किसानों को बंधुआ मजदूर बना देंगी।
7. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होने से फार्म उपज वैल्यू एडिशन, खपत एवं निर्यात बढ़ेगी।
इ. पोल्ट्री उद्योग में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आने के बाद हुआ क्या ...?
1. कान्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान दो वर्ग में विभाजित हो गए - A. अनुबंधित किसान, B. स्वतंत्र किसान।
2. अनुबंधित किसान की जमीन / पोल्ट्री फार्म पर किसी कंपनी / बैंक ने कोई कब्जा नहीं किया, लेकिन नुकसान भरपाई / चेक डिसऑनर/ चोरी के आरोप आदि के कई मुकदमें दर्ज हुए है और चल भी रहें है।
3. कान्ट्रैक्ट कंपनियों ने अनुबंधित किसानों से तैयार फसल उठाई और कुछ अपवादों को छोड़ दें तो तय अनुबंध राशि दी गई। लेकिन कोरोना काल खंड में "चिकन खाने से कोरोना संक्रमण होना" अफवाह से चिकन की मांग खत्म होने से कंपनियां खुद रेडी स्टॉक नहीं बेच पा रही थी तब, रेडी फ्लॉक, चल रहे फ्लॉक को खिलाने, पालने, बेचने की जिम्मेदारी अनुबंधित किसानों के मत्थे डाल दी, अनुबंध राशि नहीं देने का फरमान भी जारी किया गया ।
4. कुछ एक कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां किसानों का पैसा, चिटफंड कंपनियों की तरह हड़पकर रातों-रात गायब हुई।
5. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ने बिचौलियो की संख्या और बढ़ाई, उन्हें मजबूत एवं ताकतवर बनाया।
6. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां अपनी फार्म उपज कच्ची अवस्था (Live Broilers) में खुले बाजार / मंडियों में बेच रहीं है और स्वतंत्र किसानों से जमकर प्रतिस्पर्धा कर रहीं है। बडे कॉर्पोरेट्स का 98 % से अधिक उत्पादन कच्ची अवस्था (Live Broilers) खुले बाजार / मंडियों में बेचा जा रहा है, वैल्यु एडिशन एवं खपत बढ़ाने की तरफ कोई खास ध्यान नहीं है।
7. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियों ने बाजार पर सम्पूर्ण नियंत्रण, 70 % से अधिक उत्पादन पर कब्जा कर लिया और बचे हुए स्वतंत्र किसानों को वेंटिलेटर / दिवालियेपन पर पहुंचा दिया।
8. कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां अनुबंधित किसानों से अपनी शर्तों पर उत्पादन ले रही है। अनुबंधित किसान द्वारा लगाई लागत, उपलब्ध करवाई जा रही सर्विस एवं इंफ़्रास्ट्रक्चर का अनुबंध राशि तय करने में आंकलन नहीं किया जाता है।
9. कॉर्पोरेट कॉन्ट्रैक्ट कंपनियां उत्पादन वॉल्यूम व मार्केट शेयर कब्जाना फोकस करती है, स्वतंत्र किसानों से प्रतिस्पर्धा करने और बाजार गिराने में कोई रहम नहीं बरतती है।
ई. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के साइड इफ़ेक्ट :-
1. चूजे (बीज) के रेट का अधिक होना :- बीज प्रदाता / कार्पोरेट्स कंपनियों द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कूद पड़ने से स्वतंत्र किसानों को चूजा उच्च दामों (चूजे की लागत 15 रूपये, चूजा उपलब्ध हो रहा 40 से 55 रूपये) में मिलने लगा, उत्पादन लागत बढ़ गई। चूजे के लूट मूल्यों से स्वतंत्र किसानों की उत्पादन लागत (80-90 रूपये प्रति किलो) कंपनियों (55-60 रूपये प्रति किलो) की लागत के मुकाबले अधिक एवं नॉन कम्पीटीटिव होने लगें। मुर्गे के बाजार भाव 50 से 95 रु के बीच रहते है।
2. स्वतंत्र किसानों से कार्पोरेट्स कंपनियों की अनूचित प्रतिस्पर्धा (Unfair Competition) :- बीज प्रदाता मुखिया / कार्पोरेट्स कंपनियां स्वतंत्र किसानों की तरह कॉन्ट्रैक्ट फार्म उपज (Live Broilers) खुले बाजार / मंडियों में बेच रहीं है और खुले बाजार / मंडियों में स्वतंत्र किसानों से जमकर प्रतिस्पर्धा कर रहीं है जो की पूर्णतः अनूचित प्रतिस्पर्धा (Unfair Competition) है। स्वतंत्र किसानों को वर्ष में ली जाने वाली 6 फसल में से 4 में अमूमन लागत के दाम नहीं मिलते हैं। 2 फसल में लगातार घाटा होने पर किसान की हिम्मत टूट जाती है।
3. कार्पोरेट्स घरानों का 50 % से भी ज्यादा मार्केट शेयर :- तीन बीज प्रदाता / कार्पोरेट्स घरानों ने 50 प्रतिशत से अधिक उत्पादन पर एवं मध्यम वर्गीय कंपनियों ने 20-25 प्रतिशत उत्पादन पर कब्जा स्थापित कर लिया और बचे हुए स्वतंत्र किसान वेंटिलेटर पर है। बीज प्रदाता / कॉर्पोरेट्स कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ने स्वतंत्र किसान का व्यवसाय में बने रहना ही मुश्किल कर दिया है।
4. स्वतंत्र फार्मिंग में नुकसान की आशंका को देखते हुए मजबूरी में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करना :- कृषि किसान अपने खेत में कई तरह की फसलों कि बुवाई कर सकता है, लेकिन पोल्ट्री फार्मर अपने फार्म में सिर्फ पोल्ट्री फार्मिंग ही कर सकता है। घाटा होने पर फार्म बंद कर सकता है या लाखों रूपये की लागत में बने ढांचे पर जे.सी.बी. मशीन चलवा सकता है, अतः वह मजबूरी में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करता है।
उ. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे :-
1. अनुबंधित कर किसान कम पूंजी में फार्मिंग कर सकता है। उसे 100 % फिक्स खर्च (फार्म एवं फार्म सुविधाएं) एवं 20-25 % वेरिएबल खर्च करना पड़ता है, 80 % वेरिएबल खर्च (चूजे, दाना, दवाई) कॉन्ट्रैक्ट कम्पनी करती है।
2. अनुबंधित किसान को बाजार, बिक्री, खरीद इत्यादि झंझट में पड़ने की आवश्यकता नहीं रहती है।
3. मुर्गीपालन सीखने, कम अनुभवी लोगों / कम पूंजी में पोल्ट्री फार्मिंग करने और व्यवसायिक रिस्क को कम करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक अच्छा विकल्प है।
4. अनुबंधित किसान की आय नौकरी पेशा की तरह / कम, लेकिन सब कुछ ठीक रहने पर एक निश्चित राशि के आसपास होती है।
ऊ. कृषि कानून "कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020" संशोधन सुझाव :-
1. कॉर्पोरेट्स घरानों / कॉन्ट्रैक्ट स्पॉंसर्स के द्वारा किये गए उत्पादन को वैल्यू एडेड करके बेचना अनिवार्य किया जाये :- कॉन्ट्रैक्ट स्पॉनसर्स / कारपोरेट घरानों / बीज खाद प्रदाताओं की कच्ची ऊपज खुले बाजार / मंडियों में विक्रय को प्रतिबंधित करना आवश्यक व अनिवार्य करें। क्योंकि, किसान के लिए वैल्यू एडेड, प्रोसेसिंग करना असम्भव है और कॉन्ट्रैक्ट स्पॉनसर के लिए सम्भव है।
इससे स्वतंत्र किसानों एवं कान्ट्रैक्ट कंपनियों के बीच खुले बाजार / मंडियों में विक्रय प्रतिस्पर्धा / टकराव नहीं होगा, मंडियों में ओवर उपलब्धता पर लगाम लगेगा, किसानों को उपज के उचित दाम मिलेंगे, मुद्रास्फीति पर लगाम लगेगा, खपत बढ़ेगी, GST कलेक्शन बढ़ेगा, सहयोगी उद्योगों का विकास, निर्यात बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेगा, पब्लिक तक पहुंच बढ़ेगी, स्मार्ट सिटी स्किम, स्वच्छ भारत मिशन, फिट इंडिया, हिट इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया इत्यादि योजनाओं को बढ़ावा व बल मिलगा और किसानों कि आय दोगुना मिशन को निश्चित ही पंख लगेंगे ।
2. शासन कि तरफ से समयानुसार अनुबंध राशि तय कि जाये :- वस्तु विशेषज्ञ वैज्ञानिक, एक्सपर्ट्स, शासन प्रतिनिधि, किसान प्रतिनिधियों एवं कान्ट्रैक्ट स्पॉनसर की एक कमेटी बने जो तय समय पर अनुबंध राशि आंकलन (उत्पाद प्रकृति अनुसार) व निर्धारित करें। इससे गला दबाकर उत्पादन लेने पर लगाम लगेगा और दोनों पक्षों में व्यवसायिक संतुलन कायम होगा। उदाहरण - पोल्ट्री उत्पाद (अत्यधिक पैरिशेबल) के लिए हर माह अनुबंध राशि निर्धारित होना आवश्यक है।
3. चूजे (बीज) / इनपुट के मूल्यों हेतु नियमावली :- बीज, खाद प्रदाताओं / कार्पोरेट्स घरानों द्वारा निर्धारित किये जा रहे उच्च इनपुट मूल्यों हेतु नियमावली निर्धारित हो जिससे कि स्वतंत्र किसानों की लागत प्रतिस्पर्धात्मक (Competitive) हो सके।
4. कांट्रैक्ट फार्मिंग एग्रीमेंट में एकरूपता :- मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एग्रीमेंट फॉर्मेट लागु किया जाए जारी किया जाये जिससे कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट में एकरूपता आएगी और गड़बड़ी होने का खतरा कम होगा।
5. न्यायालय का विकल्प :- विवादों के निपटारे हेतु न्यायालय जाने का विकल्प होना शामिल करें।
6. इनपुट (बीज, चूजे, खाद, दवाई, वेक्सीन, फीड आदि) के मानक लिखित एवं चेक करवाना अधिकार :- कॉन्ट्रैक्ट स्पॉनसर्स द्वारा दिए जाने वाले इनपुट (बीज, खाद, दवाई, वेक्सीन, फीड आदि) के क़्वालिटी पैरामीटर्स, अनुबंधित किसान इनपुट क़्वालिटी पैरामीटर्स व उपज किसी भी लेब में चेक करवा सकता है और इनपुट क़्वालिटी से नुकसान होने पर कॉन्ट्रैक्ट स्पॉनसर्स उस नुकसान की भरपाई करेगा आदि बातें / अधिकार एग्रीमेंट में अंकित हो। साथ ही इनपुट क़्वालिटी पैरामीटर्स, इस्तेमाल मात्रा, जरुरी इत्यादि पैकेट पर स्पष्ट रूप से अंकित होना आवश्यक किया जाये ।
7. न्यूनतम राशि मिलना :- दैवीय आपदा तथा इनपुट क़्वालिटी की वजह से फसल खराब या कमजोर होने पर अनुबंधित किसान से नुकसान की भरपाई करना प्रतिबंधित हो और इन परिस्थितियों में अनुबंधित किसान को न्यूनतम राशि मिलना अनिवार्य किया जाये।
8. भारत विश्व पशु स्वस्थ संगठन (OIE) सदस्य है, अतः पशुपालन उत्पाद अनुबंधित फार्म संबंधित विभाग द्वारा जारी गाईडलाइन (फार्म प्रबंधन / निर्माण, बायो सिक्योरिटी) अनुसार संचालित होना आवश्यक है।
9. कान्ट्रैक्ट एग्रीमेन्ट दोनों पक्षों के अधिकार/जिम्मेदारी लोकल भाषा में लिखित हो, तथा सत्यापित कॉपी अनुबंधित किसान को भी देना अनिवार्य किया जाये।
10. कॉन्ट्रैक्ट स्पॉनसर्स एवं अनुबंध का रजिस्ट्रेशन होना अनिवार्य करें।
ए. विनम्र निवेदन :- भारत सरकार द्वारा लागु कृषि कानून-2 "कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020” अंतर्गत ऊपर वर्णित संशोधन प्रस्ताव शामिल किये जाने पर पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर्स वेलफेयर फेडरेशन स्वागत करती है और देश के कृषि किसानों को आशान्वित करती है की उपरोक्त संशोधन किये जाने के तदोउपरांत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, कृषि व आधारित उद्योग हेतु हितकारी होगा। उपरोक्त जानकारी अधिक से अधिक देशवासियों तक पहुंचे, आप से अपील है।
आपका सादर धन्यवाद।
भवदीय
एफ. एम. शेख
अध्यक्ष, पोल्ट्री फार्मर्स ब्रॉयलर्स वेलफेयर फेडरेशन
फोन : 9695946525 ; 9936798845
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